कविताऐ

कविताएँ
हज़ार हाथ मेरे होते तो मैं रावण को मार पाता क्या ?
मुझे नहीं लगता कि रावण मरेगा कभी क्योंकि ?
एक रावण मेरे अन्दर भी है ! जो पैदा हो जाता है मेरे अहंकार से
मुझे नहीं लगता कि हमने कभी भी उससे लड़ने की कोशिश की
वह मर जाता अगर हम रावण को मारने की वजाय उसका तिरस्कार करते !

क्या कभी इस रावण से मुलाक़ात हुई आपकी शायद हाँ ?
क्योंकि रोज़ आगे आगे वह चल पड़ता है !
शौचालय से, स्नानालय से, पूजाघर से, सज्जाघर और माथे पर चढ़,
पर रावण को मरने की बहुत चिन्ता है जिससे वह सम्भल जाता है !
दर्पण में िदखता तो है पर हम छुपा लेते हैं अपने भीतर उसे प्रतिदिन

जब यह घर के बाहर आता है तो इसकी मुलाक़ात होती है
समरथ के सरोकारों से, रिक्शावालों के बलवान होने के दम्भ से
ख़ास लोगों के संग गनर और डर्ाईबर से बाबू और पियुन से
मुलाक़ातियों के मरे हुए हुनर और कर्मचारियों के दम्भ से !
रहकर रहकर रावण दहाड़ता है काल बेल से !

फिर निकलता है रावण दौरे पर हज़ारों रावण सम्भल जाते हैं
दिखते तो सहमें हुए हैं पर अपने अन्दर के रावण को धीरज देते
कहते ही नहीं हैं करते हैं रावण की तरह अहंकार का प्रदर्शन !
फिर मेरा रावण तेरा रावण सब लंच पर चले जाते हैं
सन्नाटा छा जाता है जैसे रावण आराम करने चला जाता है?

कहीं राम नज़र आता है ! जिसकी सीता को रावण उठा ले गया हो
और किसी वाटिका में रखने के लिये नहीं आजकल की सीताएँ
सरकारी,नीजी वाटिकाओं की तलाश करती हैं वेतन पर
पर अब इन्हें डर नहीं लगता रावणों से क्योंकि ये जान गयी हैं
कि यहाँ रावण दहाड़ता नहीं दहाड़ता हुआ दिखता है !

हज़ार हाथ मेरे होते तो मैं रावण को मार पाता क्या ?
मुझे नहीं लगता कि रावण मरेगा कभी क्योंकि ?
एक रावण मेरे अन्दर भी है ! जो पैदा हो जाता है मेरे अहंकार से
मुझे नहीं लगता कि हमने कभी भी उससे लड़ने की कोशिश की
वह मर जाता अगर हम रावण को मारने की वजाय उसका तिरस्कार करते !

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